संस्कृत रचनाएँ (Samskrit Texts)
इस संस्कृत रचना खण्ड में संस्कृत भाषा में रचित किसी भी रचनात्मक कार्य का संदर्भ दिया गया है। इसमें कविताएँ, नाटक, कहानियाँ, दार्शनिक ग्रंथ, और वैज्ञानिक पाठ जैसे विभिन्न साहित्यिक रूप शामिल हैं।
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This Sanskrit Rachna section refers to any creative work composed in the Sanskrit language. This encompasses a wide range of literary forms including poems, plays, stories, philosophical treatises, and scientific texts.
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शीर्षक | ITRANS |
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त्वमेव माता च पिता त्वमेव | tvameva mAtA cha pitA tvameva |
महामृत्युञ्जयमन्त्र | mahAmRRityu~njayamantra |
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर: | gururbrahmA gururviShNu gururdevo maheshvara |
नृपसेवकवानर-कथा | nRRipasevakavAnarakathA |
गायत्री मन्त्र | gAyatrI mantra |
मधुराष्टकम् | madhurAShTakam |
श्रीललिताष्टकम् | shrIlalitAShTakam |
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ | vakratuNDa mahAkAya sUryakoTi samaprabha |
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे | namastulasi kalyANi namo viShNupriye shubhe |
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते | sarvaM jagadidaM tvatto jAyate |
ॐ असतो मा सद्गमय | asato mA sadgamaya |
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने। | ashvadAyi godAyi dhanadAyi mahAdhane |
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि | padmAsanasthite devi parabrahmasvarUpiNi |
यमाय धर्मराजाय मृत्यवे चान्तकाय च | yamAya dharmarAjAya mRRityave chAntakAya cha |
गलद्रक्तमुण्डावलीकण्ठमाला | galadraktamuNDAvalIkaNThamAlA |
त्वं गुणत्रयातीतः । त्वमवस्थात्रयातीतः | tvaM guNatrayAtItaH tvamavasthAtrayAtItaH |
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे | gaNAnAM tvA gaNapatiM havAmahe |
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः | sarve bhavantu sukhinaH sarve santu nirAmayAH |
न चोरहार्यं न च राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि | na chorahAryaM na cha rAjahAryaM na bhrAtRRibhAjyaM na cha bhArakAri |
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः | udyamena hi siddhyanti kAryANi na manorathaiH |
श्रेयो हि ज्ञानमभ्यासाज्ज्ञानाद्ध्यानं विशिष्यते | shreyo hi j~nAnamabhyAsAjj~nAnAddhyAnaM vishiShyate |
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन | karmaNyevAdhikAraste mA phaleShu kadAchana |
धर्मो रक्षति रक्षितः | dharmo rakShati rakShitaH |
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् | vidyA dadAti vinayaM vinayAdyAti pAtratAm |
अहिंसा परमो धर्मः | ahiMsA paramo dharmaH |
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् | ayaM nijaH paro veti gaNanA laghuchetasAm |
सत्यमेव जयते | satyameva jayate |
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य, न चायुक्तस्य भावना | nAsti buddhirayuktasya na chAyuktasya bhAvanA |
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् | vidyAdhanaM sarvadhanapradhAnam |
सत्यान्नास्ति परो धर्मः | satyAnnAsti paro dharmaH |
धर्मेण हीना पशुभिः समानाः | dharmeNa hInA pashubhiH samAnAH |
योगः कर्मसु कौशलम् | yogaH karmasu kaushalam |
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते | na hi j~nAnena sadRRishaM pavitramiha vidyate |
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य | nAsti buddhirayuktasya |
संगच्छध्वं संवदध्वं | saMgachChadhvaM saMvadadhvaM |