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संस्कृत रचना - न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते (Samskrit text - न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते)

न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते

हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्ध: कालेनात्मनि विन्दति ||

हिन्दी में अर्थ

ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। जो मनुष्य दीर्घकालीन योग के अभ्यास द्वारा मन को शुद्ध कर लेता है वह उचित समय पर हृदय में इस ज्ञान का आस्वादन करता है।

Meaning in English

There is nothing as pure as knowledge.
The one who has achieved perfection in Yoga, attains that self-realization within oneself at the right time.